- Parvati Jangid Suthar
सबसे सुंदर अशोक स्तंभ- लौरिया नंदन गढ़
सबसे सुंदर अशोक स्तंभ- लौरिया नंदन गढ़
पर उपेक्षित...............
सबसे सुंदर अशोक स्तंभ- लौरिया नंदन गढ़
पर उपेक्षित हो गया, कोई सुरक्षा नहीं, उस पर किसी कुछ उर्दू में लिख दिया तो किसी ने उस पर मोर बना दिया तो शेर का मुँह तोड़ डाला
ये राष्ट्रिय और सांस्कृतिक धरोहर है, इन पुरातन विरासतों के साथ ऐसा व्यवहार,अक्षम्य है, सरकार और समाज को विशेष सोचने की जरुरत है।

मैं बिहार के सीमान्त क्षेत्रों में सीमा प्रहरी और सीमाजन संवाद यात्रा पर थी ,लौरिया नंदन गढ़ 22 दिसम्बर,2020 की अलसुबह पहुंची,दिव्य पुरातन विरासत देख बहुत ख़ुशी हुई तो उसकी उपेक्षा देख बहुत दुःख।
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अशोक स्तंभ- लौरिया नंदन गढ़
प्रियदर्शी सम्राट अशोक द्वारा देश भर में 30 अशोक स्तंभ बनवाए जाने की चर्चा मिलती है। इसमें बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के लौरिया का अशोक स्तंभ प्रमुख है। पत्थर के बने इस स्तंभ के शीर्ष पर बैठे हुए शेर की आकृति बनी है। जो सम्राट अशोक के शासन काल में वीरता और वैभव का प्रतीक है। मानो ऊंचाई पर बैठा शेर दुश्मनों को चुनौती दे रहा हो कि कोई हमारे सम्राज्य की ओर बुरी नजर से न देखे। लौरिया का स्तंभ सम्राट अशोक के 27 वर्ष के शासन काल में निर्मित कराया गया था। रामपुरवा का स्तंभ इससे एक साल पहले का बना हुआ है। ( नंद मौर्य युगीन भारत, के ए नीलकंठ शास्त्री, पृष्ठ- 410 ) पर स्तंभ पर सम्राट ने जनता के लिए संदेश उत्कीर्ण कराया है। अशोक स्तंभ पर ब्राह्मी या खरोष्ठी लिपि में भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण की कथा और शासनादेश अंकित है। स्तंभ में शेर के नीचे कलात्मक पट्टी बनी हुई है। इस पट्टी में हंस के जोड़े चोंच मिलाए हुए दिखाई देते हैं।

सभी मौर्य स्तंभों के निर्माण में चुनार के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। इनके ऊपर शीशे की चमकती पालिश है जो 2000 साल बाद भी चमकती हुई नजर आती है। यह पालिश संभवत सिलिका या वार्निश से की हुई लगती है। एक ही पत्थर के इस्तेमाल से लगता है चुनार के पास कोई बड़ा शिल्प केंद्र रहा होगा जिसे सम्राट अशोक का संरक्षण प्राप्त था। शुरुआत के बने स्तंभों की तुलना में बाद में बने स्तंभों में कलात्मक परिपक्वता बढ़ती हुई दिखाई देती है। स्तंभ पर पशु आकृति और दूसरी आकृतियों में लय सामंजस्य दिखाई देता है। स्तंभ पर रस्सी, दाना और घिरनी के डिजाइन बने हुए हैं। शेर के नीचे कमल का शतदल बना है। इसमें आकर्षक पंखुडियां दिखाई देती हैं।
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बुद्ध से जुड़ी है स्मृतियां - लौरिया -नंदनगढ़ और रामपुरवा का इतिहास भगवान बुद्ध से जुडा है। नेपाल की सीमा पर भिखना ठोरी के रास्ते गौतम बुद्ध तमसा नदी पार कर रहे थे। इस दौरान वे घोड़े से रामपुरवा में गिर गए। फिर वहीं पर उन्होंने अपने राजशी वस्त्रों का त्याग कर दिया। इसके बाद वे आम आदमी का जीवन गुजारने लगे। जब बुद्ध लौरिया में पहुंचे तो मुंडन कराया। इसके बाद वे अपनी धर्म यात्रा पर निकल गए।
अशोक द्वारा बिहार में वैशाली के कोल्हुआ और बसाढ़, पश्चिम चंपारण के रामपुरवा और पूर्वी चंपारण के अरेराज में भी अशोक स्तंभ बनावा गया है।
2012 में 63 देशों के बौद्ध श्रद्धालुओं को लेकर स्पेशल महापरिनिर्वाण ट्रेन नरकटियागंज पहुंची। कई देशों के बौद्ध श्रद्धालुओं लौरिया, नंदनगढ़ और रामपुरवा का दौरा किया और इन स्थलों के विकास के लिए धन देने की बात कही।

हालांकि पर्यटन के लिहाज से लौरिया का अशोक स्तंभ उपेक्षित है। स्तंभ के आसपास सरकार द्वारा संरक्षित होने के बोर्ड लगाया गया है।
मैं 22 दिसंबर, 2020 की सुबह वहां पहुंची तो स्तंभ के आसपास की जमीन पर गैर जिम्मेदारान गतिविधियां हो रही थी, लौरिया चौक से अशोक स्तंभ के मार्ग में संरक्षित जमीन पर लोग शौच करते हैं, कचरा भरा पड़ा है, जिसकी बदबू दूर तक फैलती है।
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कैसे पहुंचे – पश्चिम चंपारण के मुख्यालय बेतिया से लौरिया की दूरी 25 किलोमीटर है। लौरिया बाजार के चौक से नरकटियागंज जाने वाले मार्ग पर 400 मीटर आगे सड़क के किनारे अशोक स्तंभ स्थित है। यहां से नरकटियागंज की दूरी 20 किलोमीटर है। आप बेतिया या फिर नरकटियागंज में रात्रि विश्राम कर सकते हैं। लौरिया बाजार में गेस्ट हाउस आदि नहीं हैं।

जय हिन्द, जय सनातन।
पुनः मैं बिहार सरकार, भारत सरकार से विनम्र आग्रह करती हूँ की हमारे पुरखों की विरासत जो हजारों हजारों साल तूफान,बारिश,भूकंप सहित तमाम विपरीत स्थितियों में अडिग हैं, लेकिन वर्तमान में असामाजिक लोग इनकी दुर्दशा कर रहे, इनकी बनावट से छेड़छाड़,यह सरासर गलत है, कृपया उचित कदम उठायें, इन क्षेत्रों का विकास करें, सुरक्षा सुनिश्चित करावें।

विनम्र आग्रह : इस स्तम्भ पर किसी ने कुछ उर्दू में लिखा है, अगर कोई इसे पढ़ सकता है तो जरूर बताएं की उस असामाजिक प्राणी ने उर्दू में अशोक स्तम्भ पर यह क्या लिखा है
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